परिचय
चक्रवात एक गहन निम्न दबाव प्रणाली है, जिसमें तेज़ हवाओं के साथ भारी वर्षा होती है। भारत के तटीय क्षेत्र, विशेष रूप से बंगाल की खाड़ी और अरब सागर, अक्सर चक्रवातों का सामना करते हैं। चक्रवात डैना 2024 का नवीनतम तूफान है, जिसका असर विशेष रूप से ओडिशा के तटीय क्षेत्रों पर देखा गया।
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चक्रवात डैना की उत्पत्ति
- बंगाल की खाड़ी के ऊपर 21 अक्टूबर को एक निम्न दबाव क्षेत्र का निर्माण हुआ, जिसने धीरे-धीरे अवसाद का रूप लिया।
- 22 अक्टूबर को यह अवसाद और गहरा हो गया और 23 अक्टूबर तक चक्रवात डैना में परिवर्तित हो गया।
- हवा की रफ़्तार अनुमानित रूप से 100-120 किमी/घंटा तक पहुँची, जिससे समुद्र में भीषण लहरें उठीं। इस तूफान ने ओडिशा और पश्चिम बंगाल के तटीय क्षेत्रों को प्रभावित किया।
प्रभावित क्षेत्र और प्रशासन की तैयारी
- भद्रक, बालासोर और केंद्रापाड़ा जिलों में चक्रवात डैना का सबसे अधिक असर देखा गया।
- राज्य सरकार ने आपदा प्रबंधन के तहत 5.8 लाख लोगों को सुरक्षित स्थानों पर पहुँचाया और राहत शिविर स्थापित किए।
- एनडीआरएफ और ओड्राफ (ODRAF) की टीमें सक्रिय रहीं, जिससे समय पर बचाव कार्य संभव हो सका।
- कई स्कूल और कॉलेज अस्थायी आश्रय स्थलों में बदल दिए गए, और आवश्यक आपूर्ति की व्यवस्था की गई।
चक्रवातों का जलवायु पर प्रभाव
- तटवर्ती क्षेत्र का क्षरण: चक्रवात समुद्र की लहरों को तीव्र करता है, जिससे मिट्टी और तटों का कटाव होता है।
- वर्षा और बाढ़: भारी वर्षा से बाढ़ की स्थिति उत्पन्न हो सकती है, जिससे फसलें और जल संसाधन प्रभावित होते हैं।
- तापमान और आर्द्रता में परिवर्तन: चक्रवात के बाद क्षेत्र में तापमान में गिरावट और आर्द्रता में वृद्धि दर्ज की जाती है, जिससे मौसमी अनियमितताएँ बढ़ती हैं।
चक्रवात के दीर्घकालिक परिणाम
कृषि पर प्रभाव: फसलों को भारी नुकसान होने की संभावना है, जिससे किसानों को आर्थिक नुकसान झेलना पड़ सकता है।
मछली उद्योग पर असर: समुद्र में गतिविधियां बाधित होने से मछुआरों की आजीविका प्रभावित हो सकती है।
समुद्री पारिस्थितिकी: तटीय जीवों के आवास प्रभावित होते हैं, जिससे जैव विविधता पर दीर्घकालिक प्रभाव पड़ सकता है।
निष्कर्ष
प्रशासन ने समय पर राहत कार्य शुरू कर बड़ी हानि को टालने में सफलता पाई। हालांकि, राहत कार्यों के बाद भी कुछ दिनों तक बाढ़ और अवरुद्ध रास्तों जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है। भविष्य में चक्रवातों से बचाव के लिए पूर्वानुमान प्रणाली और आपदा प्रबंधन को और मजबूत बनाने की आवश्यकता है।