छठ पूजा का पर्व हिन्दू धर्म में एक अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान रखता है। विशेष रूप से बिहार, उत्तर प्रदेश और झारखंड के क्षेत्रों में इसका व्यापक महत्त्व है। छठ पूजा के दौरान सूर्य देव को अर्घ्य देने का विधान है। इसमें उषा अर्घ्य यानि सुबह के समय दिया जाने वाला अर्घ्य, विशेष रूप से महत्वपूर्ण होता है। इस लेख में हम छठ पूजा भोर के अर्घ्य का सही समय, उषा अर्घ्य का महत्व और इस दौरान उपयोग किए जाने वाले उचित मंत्रों का विस्तृत वर्णन करेंगे।
उषा अर्घ्य का महत्व
उषा अर्घ्य, छठ पूजा का चौथा और अंतिम अर्घ्य होता है जो उगते सूर्य को अर्पित किया जाता है। इस अर्घ्य का मुख्य उद्देश्य उषा देवी की स्तुति करना और प्रातःकाल की पहली किरणों का स्वागत करना है। हिन्दू मान्यता के अनुसार उषा अर्घ्य देने से व्यक्ति के जीवन में प्रकाश, नई ऊर्जा और सकारात्मकता का संचार होता है। यह अर्घ्य सूर्य देव की उस कृपा का प्रतीक है जो अंधकार को हटाकर जीवन में नई आशा और शक्ति का संचार करती है।
उषा अर्घ्य देने का सही समय
सही समय पर उषा अर्घ्य देने का महत्व अत्यधिक है। उषा अर्घ्य प्रातःकाल सूर्य के उदय से पहले दिया जाता है। आमतौर पर, यह समय ब्रह्म मुहूर्त से प्रारंभ होकर सूर्य के प्रथम दर्शन तक होता है। सही समय का चयन छठ पूजा के संकल्प के अनुसार होता है, जिसमें अर्घ्य देने की समय सीमा पर विशेष ध्यान दिया जाता है।
महत्वपूर्ण समय-सीमा:
- ब्रह्म मुहूर्त: प्रातः 4:30 बजे से 6:00 बजे तक।
- सूर्य देव का प्रथम दर्शन: प्रातः 6:00 से 6:30 बजे के बीच।
इस समय-सारणी में अर्घ्य देन का नियम अपनाकर ही भक्तगण सूर्य देव को संतुष्ट करते हैं।
उचित मंत्रों का उच्चारण
उषा अर्घ्य देते समय उचित मंत्रों का उच्चारण आवश्यक होता है। इन मंत्रों के उच्चारण से सूर्य देव और उषा देवी प्रसन्न होते हैं और अपने भक्तों पर आशीर्वाद की वर्षा करते हैं। यहाँ कुछ मुख्य मंत्र दिए जा रहेĺ हैं जिन्हें अर्घ्य देते समय उच्चारित किया जा सकता है:
1. सूर्य अर्घ्य मंत्र:
- ॐ घृणि सूर्याय नमः
इस मंत्र का उच्चारण करते हुए सूर्य देव को जल अर्पण करें।
2. उषा अर्घ्य मंत्र:
- ॐ आदित्याय विद्महे दिवाकराय धीमहि तन्नो सूर्यः प्रचोदयात्।
यह मंत्र उषा अर्घ्य के समय विशेष फलदायक माना जाता है।
3. सूर्य नमस्कार मंत्र:
- ॐ ह्रां ह्रीं ह्रौं सः सूर्याय नमः
इस मंत्र के साथ सूर्य देव को अर्घ्य देना स्वास्थ्य और समृद्धि की कामना को सिद्ध करने में सहायक होता है।
उषा अर्घ्य के दौरान पालन किए जाने वाले नियम
उषा अर्घ्य के दौरान कुछ महत्वपूर्ण नियमों का पालन करना अत्यंत आवश्यक है। यहाँ कुछ विशेष नियम दिए गए हैं:
- शुद्धता का विशेष ध्यान: उषा अर्घ्य देने से पूर्व स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करना चाहिए।
- समर्पण भाव: अर्घ्य देने के दौरान पूर्ण श्रद्धा और समर्पण के साथ सूर्य देव का ध्यान करें।
- जल पात्र का उपयोग: अर्घ्य देते समय तांबे के लोटे में जल भरकर सूर्य को अर्पित करें।
छठ पूजा भोर का अर्घ्य: मुख्य विधि
1. स्नान और वस्त्र: उषा अर्घ्य देने से पूर्व शुद्ध जल से स्नान करें और स्वच्छ कपड़े पहनें।
2. लोटे में जल भरें: एक तांबे के लोटे में स्वच्छ जल भरें और उसमें गंगाजल मिलाएँ।
3. मंत्रों का उच्चारण: लोटा हाथ में लेकर सूर्य देव की ओर मुख करके उचित मंत्रों का उच्चारण करें।
4. अर्घ्य अर्पित करें: सूर्य देव की ओर धीरे-धीरे जल अर्पित करें।
उषा अर्घ्य के लाभ
उषा अर्घ्य देने के लाभ अनेक हैं। इसे देने से न केवल शारीरिक बल्कि मानसिक स्वास्थ्य में भी लाभ होता है। इसे करने से व्यक्ति की ऊर्जा में वृद्धि होती है और मानसिक शांति मिलती है। साथ ही, घर में सुख, शांति और समृद्धि का वास होता है। छठ पूजा के इस अर्घ्य से व्यक्ति के सभी कष्ट और समस्याएँ दूर होती हैं और जीवन में सकारात्मक बदलाव आता है।
अंत में
छठ पूजा में भोर का अर्घ्य यानी उषा अर्घ्य का विशेष महत्व होता है। सही समय पर और उचित मंत्रों के उच्चारण के साथ इसे करने से भक्तों को सूर्य देव की कृपा प्राप्त होती है और उनके जीवन में नई ऊर्जा और समृद्धि का संचार होता है।