Chhath puja 2024 - छठ पूजा का पर्व बिहार की संस्कृति में गहरे से रचा-बसा है, जो मुख्यतः सूर्य देव और छठी मैया की आराधना के लिए मनाया जाता है। यह पर्व न केवल धार्मिक आस्था को दर्शाता है बल्कि प्रकृति के प्रति मानव का आदर भी दिखाता है। बिहार और पूर्वी उत्तर प्रदेश में सबसे अधिक प्रचलित इस पूजा का इतिहास सदियों पुराना है। छठ पूजा बिहार के लोगों के जीवन में इस प्रकार समा गया है कि यह उनकी पहचान बन गया है।
(toc) #title=(Table of Content)
सूर्य देव और छठी मैया में क्या संबंध है?
सूर्य देव को ऊर्जा, शक्ति और जीवन का स्रोत माना जाता है, जबकि छठी मैया को संतान की रक्षा और स्वस्थ जीवन का आशीर्वाद देने वाली देवी के रूप में पूजा जाता है। छठ पूजा में सूर्य देवता के साथ-साथ छठी मैया की उपासना की जाती है। ऐसा माना जाता है कि सूर्य देव की किरणों से जीवन में नई ऊर्जा मिलती है, और छठी मैया संतान सुख और परिवार की रक्षा का आशीर्वाद देती हैं। इस प्रकार, यह पर्व जीवन के हर पहलू से जुड़ा हुआ है, जिसमें स्वास्थ्य, संतान, और ऊर्जा का आशीर्वाद शामिल है।
छठ पूजा का एतिहास
छठ पूजा का इतिहास प्राचीन काल से जुड़ा हुआ है। इसके बारे में माना जाता है कि त्रेता युग में भगवान राम और माता सीता ने अयोध्या लौटने के बाद इस पूजा का आयोजन किया था। इसके अलावा, महाभारत काल में पांडवों की पत्नी द्रौपदी ने भी सूर्य उपासना के लिए छठ व्रत का पालन किया। इस पूजा का संबंध पौराणिक काल से है और यह माना जाता है कि यह पर्व लोक जीवन में सूर्य देव और प्रकृति के प्रति आस्था को प्रकट करने का माध्यम है।
छठी की रात क्यों मनाई जाती है?
छठ पूजा चार दिनों का पर्व है जिसमें छठी की रात, जिसे "संध्या अर्घ्य" भी कहते हैं, का विशेष महत्व होता है। इस दिन व्रती गंगा या किसी नदी के तट पर जल में खड़े होकर डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य देते हैं। इस रात का महत्व इसलिए है कि सूर्य की अंतिम किरणों को अर्घ्य देने से शरीर और आत्मा को शांति और संतुलन मिलता है। इसके बाद, उगते सूर्य को अर्घ्य देने के साथ पूजा का समापन होता है।
पहली बार किसने मनाया था छठ पूजा?
ऐतिहासिक कथाओं के अनुसार, छठ पूजा का पालन सर्वप्रथम सूर्यवंशी राजा कर्ण द्वारा किया गया था। कर्ण भगवान सूर्य के अनन्य भक्त माने जाते थे और वे प्रतिदिन सूर्य को अर्घ्य अर्पण करते थे। इसके अलावा, भगवान राम और माता सीता ने भी अयोध्या लौटकर छठ पूजा का आयोजन किया था, जो इस पर्व की प्राचीनता और महत्व को दर्शाता है।
भारत का सबसे कठिन व्रत कौन सा है?
भारत में कई कठिन व्रतों में से छठ पूजा का व्रत सबसे कठिन माना जाता है। इस व्रत में 36 घंटे तक निराहार और निर्जल रहने का नियम होता है। इस कठिन तपस्या के दौरान, व्रती अपने संकल्प और संयम का परिचय देते हैं। व्रत का उद्देश्य केवल शारीरिक तपस्या नहीं, बल्कि मन को शांत और संयमित करना भी है, जो इसे अत्यंत कठिन और पवित्र बनाता है।
2024 में छठ पूजा कब है?
साल 2024 में छठ पूजा की तिथियां इस प्रकार हैं:
- नहाय-खाय: 5 नवंबर 2024
- खरना: 6 नवंबर 2024
- संध्या अर्घ्य: 7 नवंबर 2024
- उषा अर्घ्य: 8 नवंबर 2024
यह तिथियां छठ पूजा के भक्तों के लिए विशेष महत्व रखती हैं, क्योंकि इन दिनों में पूजा करने से सूर्य देवता और छठी मैया से आशीर्वाद प्राप्त होता है।
chhath puja 2024 पूजा विधि
छठ पूजा की पूजा विधि विशिष्ट और अत्यंत पवित्र मानी जाती है। इस पूजा के चार मुख्य दिन होते हैं:
1. पहला दिन (नहाय-खाय): इस दिन व्रती नदी में स्नान कर शुद्ध भोजन ग्रहण करते हैं और व्रत का संकल्प लेते हैं।
2. दूसरा दिन (खरना): दिनभर निर्जल रहने के बाद व्रती शाम को गुड़ और चावल का विशेष प्रसाद ग्रहण करते हैं।
3. तीसरा दिन (संध्या अर्घ्य): डूबते हुए सूर्य को जल में खड़े होकर अर्घ्य दिया जाता है, जो व्रत का प्रमुख भाग होता है।
4. चौथा दिन (उषा अर्घ्य): उगते सूर्य को अर्घ्य देने के साथ व्रत का समापन होता है और फिर व्रती पारण करते हैं।
छठ पूजा का वैज्ञानिक और सामाजिक महत्व
छठ पूजा न केवल धार्मिक आस्था से जुड़ा है, बल्कि इसका वैज्ञानिक महत्व भी है। सूर्य की किरणों से शरीर को मिलने वाले विटामिन डी और उनकी रोग निवारक क्षमता का प्रभाव वैज्ञानिक रूप से सिद्ध है। इसी कारण, छठ पूजा में सूर्य की पूजा और अर्घ्य देने की परंपरा का पालन किया जाता है। साथ ही, यह पर्व समाज में एकता और सहयोग की भावना को भी मजबूत करता है, क्योंकि इसमें सभी लोग मिलकर पूजा करते हैं और एक-दूसरे की मदद करते हैं।
निष्कर्ष
छठ पूजा बिहार के लोगों की गहरी आस्था का प्रतीक है। सूर्य और छठी मैया के प्रति समर्पित यह पर्व न केवल एक धार्मिक आयोजन है, बल्कि यह जीवन में प्रकृति, संयम और संतुलन का प्रतीक भी है। सूर्य और छठी मैया में आस्था से जुड़े इस पर्व के माध्यम से हमें प्रकृति का सम्मान करने और समाज में एकता बनाए रखने का संदेश मिलता है। 2024 में छठ पूजा की तिथियों के साथ, यह पर्व एक बार फिर भक्तों को आशीर्वाद और सकारात्मकता से भर देगा।